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महा(न)-प्रबंधक; The great manager

Kisse hakikaton ke.........
Kisse hakikaton ke.........
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कुछ समय के लिये राहत लेकर आई मार्च माह की ठण्ड ,दबे पावँ गर्मी को न्योता देते हुए खिसकने की कोशिश में थी।
जबलपुर संभाग के समीप जिला कटनी के सागर कॉलोनी इलाके में स्थित अपने घर से 55 बर्षीय ” हरिनंदन दुबे” सुबह के 10 बजे अपने कार्यस्थल गोल बाजार स्थित “भारतीय स्टेट बैंक” शाखा के लिए निकल पड़े।
कटनी की गोल बाजार की एस बी आई शाखा प्रदेश के सबसे व्यस्ततम शाखाओं में आती थी। जिसमे जहां एक तरफ व्यापारी, राजनेताओं और प्रशासन का दबदबा था वहीँ दूसरी ओर बैंक के टारगेट सिस्टम का असीम प्रेशर ,स्टाफ की सांस गिनता था।
दुबेजी, शाखा में असिस्टेंट मेनेजर (बैंकिंग) और सबसे सीनियर स्टाफ के रूप में पदस्थ थे। बड़े बेटे अरविन्द के बिल्डरशिप के सपने और छोटे बेटे सुशिल के बिज़नेस आइडियाज, सर्विस क्लास की सोच रखने वाले दुबेजी के तनाव के हमेशा मुख्य कारण बने रहते थे। ऊपर से नैकरी का प्रेशर उनकी बीपी और शुगर की रीडिंग बढ़ाता रहता था।
बेटों के सेटल होने की, शादी की, विवादित पुश्तैनी जमीन पर चल रहे केस की वजह से दुबेजी के 5 बहुत गहरे मित्र बन गए थे, जिनके नाम थे, फ्रस्टेशन-गुस्सा-चिंता-दुःख और चिड़चिड़ापन। यह पाँचों उनके साथ हमेशा रहते थे और बड़ी मेहनत से इन्होंने दुबेजी के मूल स्वाभाव को बेहद घातक बना दिया था।
सोमवार की दोपहर, शाखा में पदस्थ वर्तमान प्रबंधक के तबादले के साथ “कृष्ण कुमार अग्रवाल” के नए प्रबंधक के रूप में शाखा आगमन का समाचार लेकर आई।
दुबेजी को अपने अब तक के कार्यकाल में एक से एक प्रबधकों के साथ काम करने का चट्टानी तजुर्बा था।
कुछ दिनोपरांत छोटे कद के, चेहरे पर शांतिय मुस्कान, भवमुक्त और समुन्दर सी गहराई वाली शख्सियत लिए 46 वर्षीय “अग्रवाल साहब” ने शाखा में प्रवेश लिया और समस्त स्टाफ मेंबर्स को संबोधित किया।
दुबेजी की उम्र और अनुभवों का लिहाज करके और उनसे सीखने के नजरिये से अग्रवाल साहब ने शाखा प्रबंधक के रूप में शाखा का संचालन सुचारू रूप से शुरू किया।
बीतते वक़्त के साथ ,दुबेजी पल पल अपने पाचों मित्रों से अग्रवाल साहब को अवगत कराते रहे।
रोजाना सर चढ़के बोलते काम के प्रेशर से हलाकान दुबेजी की समस्याओं का अग्रवाल साहब बड़ी सहजता,धैर्यता और मुस्कान के साथ हल करते रहे।
अग्रवाल साहब के सरल स्वभाव और काम के प्रति जबरदस्त कुशलता देख ,दुबेजी अपनी पारिवारिक चिंताओं का रोना भी अग्रवाल साहब के सामने रोते रहे। शख्सियत के अनुकूल अग्रवाल साहब ,दुबेजी का ढांढस बंधाते रहे।
दुबेजी ,अग्रवाल साहब के परिवार के बारे में बस इतना ही जानते थे की वे अपनी पत्नी सुषमा और दो जुड़वाँ बेटियों (रेखा और गुंजन) के साथ रहते हैं।
गतिवान समय गुजरते हुए और डेढ़ वर्ष समाप्त करते हुए एक बार फिर मार्च का भारी महीना लेकर आया। शाखा में मार्च माह में ऑडिट और क्लोजिंग स्टाफ के ऊपर प्रेशर की आतिशबाजियां कर रहा था। वहीँ अग्रवाल साहब पुरी तैयारी से लैस थे।
माह के बीच में दुबेजी के बड़े बेटे के शहर के नामी बिल्डर से बढ़ती विवस की स्थिति ने उन्हें छुट्टी लेने के लिए मजबूर कर दिया।
अग्रवाल साहब ने अपनी टीम और दुबेजी की अनुपस्थिति में मार्च माह का न सिर्फ डटकर मुक़ाबला किया बल्कि ऑडिट और क्लोजिंग को बेहतरीन अंजाम दिया।
चिन्तिय अवस्था में लौटते दुबेजी का अग्रवाल साहब ने अपनी सुप्रसिद्ध मुस्कान के साथ स्वागत किया।
लगभग 2 वर्ष बाद , अग्रवाल साहब के प्रमोशन और तबादले की खबर शाखा पहुंची। उनके साथ बिताये सफ़र का चिंतन करते हुए और अचरज से भरते दुबेजी को ख्याल आया की इन 3 सालों में अग्रवाल साहब के परिवार से तोह मिले ही नहीं !
अग्रवाल साहब की गृहस्थी के स्थानातरण हेतु ,दुबेजी उनकी मदद हेतु उनके घर पहुंचे। दोनों गोल बाजार शाखा में हुई तमाम गतिविधियों पर चर्चा करते रहे और चुटकियाँ लेते रहे।
इसी बीच अग्रवाल साहब ने अपनी पत्नी को आवाज और रेखा और गुंजन को बुलाने कहा।
बाहर आयीं अग्रवाल साहब की दोनों बेटियों को देखकर ,दुबेजी स्तब्ध रह गए, शरीर ठंडा और सुन्न पड़ गया, पैरों के नीचे जमीन और सर पर आसमान ना रहा, हलक में अटकी हुई सांस के साथ वे निशब्द बैठे रहे।
अग्रवाल साहब की दोनों बेटियां मानसिक और शारीरिक रूप से पूर्णतः विकलांग थीं। जिनका ख्याल अग्रवाल साहब और उनकी पत्नी ने बहुत अच्छे ढंग से रखा था।
उन्हें देखकर दुबेजी की आखों के सामने पिछले 3 साल का पूरा फ्लैशबैक चल रहा था। उस समय घडी का एक एक सेकंड उन्हें बता रहा था वो कैसे सर के सामने अपने छोटी मोटी तकलीफें बताते थे और सर उस समय कितनी आसानी से मुस्कुराते हुए उन्हें हल करते थे। पूरे तीन सालों में साहब ने कभी अपना गम दुबेजी को कभी बयां नहीं किया, बल्कि उल्टा अपनी जिम्मेदारियों और कार्यों को पूरी जिंदादिली के साथ अंजाम देते रहे।
उस पल में कृष्ण कुमार अग्रवाल,दुबेजी के सामने महाभारत की रण भूमि मैं अर्जुन को अपना विराट रूप दिखानेे वाले भगवान श्री कृष्ण की तरह प्रतीत हो रहे थे।
अगली भोर ,अग्रवाल साहब अपने नए कार्यस्थल “जबलपुर के सिविल लाइन्स स्थित सबसे व्यस्ततम एस. बी.आई शाखा में पदस्थ होने के लिए कटनी स्टेशन पर अपने परिवार के साथ पहुंचे। उन्हें विदाई देने दुबेजी के साथ शाखा के लगभग सभी स्टाफ मेंबर्स पहुंचे थे।
दुबेजी अग्रवाल साहब को गले लगाते वक़्त अपने अश्रुओं के सैलाब की रोक न सके। एक बार फिर वही मुस्कान के साहब ने दुबेजी का ढांढस बंधाया। और सबसे विदा ली।
अगले दिन शाखा में पहुंचकर अग्रवाल साहब की कुर्सी को देख ,दुबेजी के मुख से एक ही बात निकली की साहब ना ही सिर्फ शाखा परतुं जिंदगी के भी महा(न) प्रबंधक हैं।

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